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भयानक दैत्य

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भयानक दैत्य
बचपन में पढ़ते थे – “ फिर एक भयानक दैत्य आया, उसने अपना मुँह इतना बड़ा फैलाया कि जैसे सब कुछ निगल जायेगा |”
आज वो दैत्य सचमुच आ गया है | क्या कुछ नहीं निगल रहा ये दैत्य ? जंगल, खेत-खलियान, मैदान, बगीचे, पहाड़, झरने, नदियाँ, हरियाली और बहुत कुछ | आज के दौर में इतना भयानक दैत्य ? विचित्र लगता है ना ? लेकिन ये दैत्य किसी से छिपा नहीं है | भारतवर्ष की विशाल आबादी के रूप में सबके सामने है और स्वयं राजसत्ता इसे पोषित करती है | अनेकों बार ये कहा जाता है कि “हमारी सरकार सब को मुफ्त आवास देगी या ऐसी ही कोई और सुविधा |” ऐसे बयान या ऐसी योजनायें ही तो इस दैत्य का मनोबल बढाती हैं | आखिर ये “सब” हैं कितने ? क्या कोई सरकार इस सब का परिसीमन कर पाने में सक्षम है ? अगर स्वयं विश्वकर्मा भी आ जाएँ तो इन “सब” के लिए आवास नहीं बना सकते | क्योंकि इन में “सब” इस गति से वृद्धि हो रही है कि अगर आज आर्यभट्ट भी होते इसकी गणना के लिए कोई गणितीय सूत्र नहीं दे पाते |
इस घातक आबादी के समक्ष बड़े से बड़े विकास कार्य भी बोने साबित हो रहे हैं | ना जाने देश के कितने हरे-भरे खेतों और जंगलों को चट कर गयी ये आबादी | हर जगह मनुष्य के आवास….. और तो और सुन्दर पहाड़ों को भी मनुष्य के बोझ ने दबा डाला | सड़कें, स्टेशन प्लेटफार्म, चिकित्सालय, विद्यालय सब के सब हाँफ रहे हैं आबादी के भार से |
देश के प्राकृतिक संसाधन नष्ट हो रहे हैं, देश नष्ट हो रहा है | देश और देश की खुशहाली की रक्षा करनी है है तो जनसँख्या वृद्धि के दैत्य को रोकना होगा | देश में काफी विकास हो चुका है परन्तु उस विकास का सुख हम नही भोग पा रहे हैं क्योंकि हम हैं ही बहुत ज्यादा | अगर हम और ना बढे तो न केवल हम अब तक हो चुके विकास की सुखानुभूति कर सकेनेगें वरन और अधिक विकास करने में सक्षम होंगें |
क्या कोई शासक इस विशाल और घातक दैत्य को रोकने की नीति बनाएगा ? या फिर सभी पूर्व के शासकों की भांति अपनी सत्ता को सुरक्षित रखने का प्रयास करते हुए इस दैत्य को “मुफ्त” वाली योजनाओं का पौषाहार प्रदान करते रहेंगें ?

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