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शिक्षक भर्ती प्रक्रिया : कहाँ से आये गुणवत्ता

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शिक्षक भर्ती प्रक्रिया : कहाँ से आये गुणवत्ता

मुझे याद है जब हम बी०एड० की प्रवेश परीक्षा में सफल होकर पहली बार कक्षा में पहुँचें तो हमें पता चला कि हम लोग गिनती में केवल छप्पन हैं | अर्थात अविभाजित जनपद मुजफ्फरनगर में गंगा और यमुना के सवा सौ किलोमीटर से भी  लम्बे क्षेत्र में हम छप्पन छात्रों को बी०एड० में प्रवेश दिया गया था और वो भी अविभाजित मुजफ्फरनगर के एकमात्र बी०एड० कॉलेज में | अगर शामली जनपद की बात की जाये तो यहाँ से हम केवल पाँच ही छात्र प्रवेश पाने में सफल हो पाए थे | ज़रा सोचकर देखिये कि प्रवेश परीक्षा का स्तर क्या रहा होगा |
यहाँ पर बताना चाहूँगा कि हममे से अधिकाँश छात्र-छात्रा हिन्दी माध्यम के स्नातक थे | और लगभग सभी हिन्दी माध्यम वाले छात्र-छात्रा माध्यमिक शिक्षा परिषद, उत्तर प्रदेश के विद्यार्थी रहे थे | कक्षा में हमें पता लगा कि हम ज्यादा बड़े तीसमार खां नही हैं, अन्य साथी हमसे कम नही योग्य थे | सच कहूँ तो कुछ तो हमसे बहुत बुद्धिमान थे | कुछ की ग्रहण क्षमता हमें आश्चर्य चकित कर देती थी तो कुछ की तर्क शक्ति | कुल मिलाकर एक से बढ़कर एक थे | कुछ साथी तो जटिल से जटिल समस्याओं भी ऐसे हल कर देते मुँह आश्चर्य से खुला रह जाता |
सेवा में आने के उपरान्त सह-समन्वयक का दायित्व मिला तो विद्यालयों में जाने और परखने का अवसर मिला | एक दिन मेरे एक साथी सह-समन्वयक ने एक शिक्षा-मित्र को एक तीन अंकों की एक विशिष्ट संख्या को दो से भाग देने को कहा | शिक्षा मित्र ने भाग करने में गलती कर दी | फिर कौतुहलवश हमने वही प्रश्न एक नवचयनित अध्यापक से करवाकर देखा | आश्चर्य हमें सही हल नही मिला | फिर तो हमने अनेकों स्कूल में यह प्रश्न रखा | परिणाम ने हमारे मस्तिष्क को घोर अचम्भे में डाल दिया |
सवाल के कुछ ज़वाब ऐसे थे-
आप तो अंग्रेजी के सह-समन्वयक हैं गणित क्यों पूछतें हैं,
गणित तो मेरा विषय रहा ही नही,
थोडा सा ही तो गलत है, सब सवाल थोड़े ही ऐसे होते हैं ,
मुझे तो गणित देखे काफी दिन हो गए, गणित तो शर्मा जी ही पढाते हैं
आदि-आदि ……………..
अंतत: दो वृद्ध अध्यापक ऐसे मिल ही गए जो वो प्रश्न हल कर पाए | मुझे अच्छी तरह स्मरण है कि इस तरह के भाग के सवाल तो हमें सरकारी पाठशाला में कक्षा दो में ही खूब करवाए गए थे | सरकारी पाठशाला में हमें सभी विषयों की वो आधारभूत शिक्षा हमें दी गयी थी, हमें भविष्य में कभी अपनी नीव खोखली नही लगी | वो बात अलग है कि आजकल की तरह हमें किसी भी कक्षा की अंतिम परीक्षा या किसी उपाधि में अस्सी-नब्बे  प्रतिशत अंक  प्राप्त नही हुए |
लेकिन मुझे लगता है अपनी बेसिक और माध्यमिक शिक्षा के कारण ही अविभाजित मुज़फ्फरनगर की बी०एड० की छप्पन सीटों में एक से एक को कब्जाने में मैं सफल रहा | बी०टी०सी० की थोड़ी सी सीटों में भी अपना स्थान बनाने के लिए काफी तैयारी करनी पडी थी | तब कंही जाकर सेवा में आने का अवसर मिला |
अब विद्यालयों में शिक्षा के स्तर को  अतिदयनीय स्थिति में देखकर लगता है कि  शिक्षा की इस हालत के लिए कहीं न कहीं भर्ती प्रक्रिया भी जिम्मेदार है | दस साल पहले जितने बड़े मुज़फ्फर नगर  से केवल छप्पन विद्यार्थी अध्यापक प्रशिक्षण के लिए चुने गए थे आज दस साल बाद आज उतने ही बड़े मुज़फ्फरनगर (अर्थात शामली सहित) में हजारों की संख्या में लोग बी०एड० कर रहे हैं | प्रवेश परीक्षा में कितने भी कम अंक क्यों न हों बस जेब में पैसे होने चाहिए प्रवेश ज़रूर मिलेगा और अंक भी अस्सी-नब्बे प्रतिशत के बीच मिल ही जायेंगें | जबकि उन छप्पन में से एक भी पचहत्तर प्रतिशत के आंकड़े को नही छू पाया था |
जिस मेरिट के आधार पर आज अध्यापक चयनित हो रहे हैं क्या उस मेरिट की मेरिट से लोग परिचित नही | जो छात्र यू०पी० बोर्ड में पचपन प्रतिशत अंक लाता है वो सी०बी०एस०इ० के पचहत्तर प्रतिशत वाले छात्र से कम योग्य तो बिल्कुल नही ज्यादा भले ही हो | इसके साथ ही ये बात भी विचारणीय है कि किसी इण्टरकॉलेज से जब कोई विद्यार्थी पास नही हो पाता तो कुछ खास स्थानों पर स्थित इण्टरकॉलेजों से उसे परीक्षा दिलाई जाए तो वो प्रथम श्रेणी से पास हो जाता है | मेरिट से अध्यापक चयन की यह बीमारी माध्यमिक शिक्षा में भी जा पहुंची |
शिक्षा में गुणवत्ता की फिर से बहाली के लिए यह आवश्यक है कि चयन प्रक्रिया भी गुणवत्ता के आधार पर हो | केवल टी०ई०टी० प्रयाप्त नही | फिर से प्रवेश परीक्षा बहाल की जाए ताकि अध्यापक बनने से पहले अभ्यर्थी अपने आप को शिक्षक बनने के योग्य बना सके और दो से भाग के प्रश्न के ऊपर वर्णित उत्तर ना दे |

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