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वृद्धाश्रम का रास्ता

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वृद्धाश्रम का रास्ता

बहुत बुरा लगता है जब वृद्धाश्रमों में वृद्धों की बढ़ती हुयी संख्या देखते हैं | अपनी ही औलादों से त्रस्त वृद्ध माता-पिता वृद्धाश्रमों का रुख कर रहे हैं | आँखों में आँसू लिए हुए | कुछ बहुओं के व्यवहार से आहत हैं तो कुछ अपनी ही औलाद से | लेकिन माँ बाप के ये लाडले क्यूँ अपने माता को घर छोडने के लिए विवश कर रहे हैं ? कहीं ये पीड़ित अपना ही बोया तो नही का काट रहे ?

कुछ दशक पहले के समय में जायें तो देखा जा सकता है कि पहले औलादों का आचरण अब से पूरी तरह भिन्न था | लेकिन वहाँ हमें और कुछ भी देखने को मिलता है | बालक सुबह-सुबह माँ की गोद में आँखे खोलता था | फिर पिता की उँगली पकड़कर खेत पर जाना | थोडा बड़े हुए तो पिता कन्धे पर बैठा कर स्कूल तक ले जाने लगे | शाम को पूरा संयुक्त परिवार एक साथ बैठा करता था | गर्मियों के दिनों में शाम होते ही छत पर पानी छिडका जाता था | फिर छत पर बिस्तर लगते और पिता के साथ ढेर सारी इधर-उधर की बातें | दुनिया भर की बातें | और तब तक चलती रहती ये बातें जब तक माँ आती | और फिर सब बालक माँ के पास आकर दुबक जाते और फिर शुरू होती प्यारी-प्यारी कहानियाँ | राम की कहानी आज्ञाकारी बनने की शिक्षा देती, श्रवण कुमार की कहानी से माता-पिता की सेवा करने का भाव मन में आता | विक्रमादित्य के किस्से सुनकर उस जैसा ही वीर बन जाने को मन करता | सुन्दर राजकुमारी की कथा सुनकर मन में कोमल भाव उत्पन्न होते | और फिर सो जाते सब के सब माँ के आगोश में |

जो कुछ भी उस समय बालक सीखता अपने माता-पिता या फिर शिक्षकों से ही सीखता | पूरे व्यक्तित्व का निर्माण ही माता-पिता या फिर उन्ही की प्रेरणा से विकसित होता | माता-पिता का भरपूर साथ मिलता तो उनके प्रति आत्मीयता का भाव भी खूब रहता |

अब देखिये बच्चे को माँ की मधुर आवाज़ नहीं अलार्म घडी की खीज भारी आवाज़ जगाती है | माँ को फुर्सत नही कि सुबह के नाश्ते में प्यार भी मिलाए | जो बन गया उसी से काम चलाना पड़ेगा | स्कूल बस घर के सामने ही आकर रुकेगी | स्कूल से बच्चा आया तो होमवर्क लेकर बैठ गया | और फिर ट्यूशन ……| समय बचा भी तो बच्चे को बैठा दिया टी०वी० के सामने | क्यूंकि माँ-बाप को तो फुर्सत ही नही काम से | रात को बच्चे को गुड नाईट कहा और फिर बच्चा अपने कमरे में और माँ-बाप अपने कमरे में | किसे फुर्सत है कि देख तो ले बच्चा कितनी देर तक टी०वी० से चिपका रहा या फिर कितनी देर तक इंटरनेट पर अजनबी दोस्तों से चैटिंग करता रहा | कब सो गया कुछ पता नही | अब तो दादा-दादी भी नही हैं पास में जो सीने से लिपटा कर सुलाते |

कहाँ से आये अच्छे संस्कार ? आधे से भी ज्यादा नग्न अभिनेत्री के अश्लील नृत्य देख कर क्या बच्चा अपनी माँ में सीता की छवि देख पायेगा | पिता के पास बेटे के लिए रुपये तो बहुत हैं लेकिन समय बिलकुल नही | तो क्यूँ पिता उम्मीद करता है कि उसका बेटा उसके साथ श्रवण जैसा व्यवहार करे ? जो कुछ बच्चे ने सीखा जो कुछ जाना इंटरनेट से सीखा, तो क्या गारण्टी कि उसने सब कुछ अच्छा ही सीखा होगा | अगर माँ-बाप ने सिखाया होता तो ज़रूर कुछ अच्छा ही सीखा होता | जब बच्चा छोटा था तो माता-पिता का स्नेह उसे नही मिला तो बड़े होने पर उसके व्यवहार में आत्मीयता क्यूँ तलाशी जाती है ?

आज अगर हमारे पास अपने बच्चों के लिए समय नही तो कल हम उनसे अपने लिए समय की माँग नही कर सकते | कहीं न कहीं वृद्धाश्रम जाने का रास्ता हम खुद बनाने लगे हैं |

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