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कितने विभाजन और ???

मेरी बात
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मुझे इग्नू से कोई कोर्स करना था. क्षेत्रीय कार्यालय देहरादून से संपर्क किया तो उन्होंने बताया कि इस कोर्स के लिए निकटतम अध्ययन केन्द्र अल्मोड़ा है. उत्तरप्रदेश के जनपद प्रबुद्धनगर का निवासी इस कोर्स के लिए दूसरे राज्य में जाये? पूरे उत्तर प्रदेश में कंही भी वो कोर्स उपलब्ध नहीं. कोर्स करने का विचार त्याग दिया.
सोचता हूँ जो अल्मोड़ा आज “वो अल्मोड़ा” हो गया है, कुछ साल पहले तक वो “ये अल्मोड़ा” था. लखनऊ या इलाहाबाद दूर हैं, लेकिन अपने लगते हैं. उत्तरप्रदेश को तोड़ कर जो विभाजन की रेखा खींच दी गयी है उसी के कारण आज अल्मोडा “वो अल्मोड़ा” हो गया है. कल क्या लखनऊ और इलाहाबाद भी “वो लखनऊ और वो इलाहाबाद” हो जायेंगे. क्या लखनऊ और इलाहाबाद के निवासी दूसरे राज्य में जायेंगे ताजमहल देखने जाया करेंगे ? सरकार और नेताओं की अकुशलताओं को खामियाजा देश और देश की जनता क्यूँ भुगते? बड़े-चौड़े क्षेत्र का शासन नहीं संभाल सकते तो कर दो टुकड़े, और कोई विकल्प नही है इनके पास. अब बचे हुए उत्तरप्रदेश पर कुदृष्टि लगाए बैठे हैं. राम और कृष्ण की धरती बाटने की कोशिश की जा रही है. कल क्या फिर से देश को काटकर-बांटकर किसी और को सौंप देंगे कि लो भाई बड़ा देश था हमें शासन करने में दिक्कत आ रही थी. फिर से अखंड भारत को खण्ड-खण्ड करने की प्रष्ठभूमि बनायी जा रही है.
आज तेजी से संचार और परिवहन की गति बढ़ रही है, दुनिया सिमट कर ग्लोबल “गाँव” बन गयी है, और इन बेवकूफों को अपना देश और अपने प्रदेश बड़े लग रहे हैं. प्रशासनिक व्यवस्था को सुधारा जा सकता है, कार्यप्रणाली में सुधार किया जा सकता है, अधिकारिओं को नए सिरे से प्रशिक्षित किया जा सकता है, बुद्धिमानों की कमी राजनीति में ही तो है देश में तो नहीं, और विभाजन की लकीरें खीचना ज़रूरी तो नहीं.

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