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जितने ज्यादा सत्ता के भागीदार ,
उतना ही ज्यादा भ्रष्टाचार .
फिर अनावश्यक रूप से हाँ क्यूँ अपने ऊपर और ज्यादा भागीदार बैठा रहे हैं . इतनी बड़ी सरकारी मशीनरी कम पड़ रही है क्या देश को चूस-चूसकर खाली करने के लिए की और नए पद सृजित किये जा रहे हैं , और क्या होगा लोकपाल जैसे और नए पद को रचने का ? भ्रष्टाचार खत्म होगा ? सपने में भी नहीं .
गुलदस्ते को संवारना है तो उसमे और ज्यादा फूल ठूसने से बेहतर है की उसमे से उन फूलों को निकल दिया जाए जो सडन पैदा कर रहे हैं . फूल थोड़े होंगे पर घर को महकाएँगे तो .
इतने सारे सरकारी वेतन भोगी हैं इस देश में . सबका वेतन जनता से ही अप्रत्यक्ष रूप से निकाला जाता है . सांसद , विधायक, मंत्री सभी जनता पर बोझ बने हुए हैं . इस बोझ को और ज्यादा क्यूँ बढ़ाया जाये ? जनता के हित की इतनी ही चिंता है तो कुछ ऐसा क्यूँ नहीं किया जाता या सोचा जाता कि सांसद , विधायक, मंत्री और जितने लोग जो पर्त्यक्ष या अपर्त्यक्ष रूप से जनता की कमाई पर मौज उडा रहे हैं , वे सब के सब जनता के लिए उपयोगी बन जाए .
हमारे पास जितने अधिकारी कर्मचारी और जितने भी लोग जिनके भ्रष्ट होने का रोना हम रोते हैं उन्हें इस तरह जिम्मेदारी सोंपी जाये की वो इमानदारी से अपने काम को करने के लिए मजबूर हो जाये . प्रशासनिक व्यवस्था को स्वस्थ बनाने की ज़रूरत है . उसमे और भीड़ करने की नहीं .
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